शिव पुराण के अनुसार द्वादश ज्योतिर्लिंग और उनके महत्व
इन द्वादश ज्योतिर्लिंगों की पूजा और नामों का स्मरण करके भक्त न केवल आध्यात्मिक शांति प्राप्त करते हैं, बल्कि उनके जीवन में स्थिरता और समृद्धि भी आती है। भगवान शिव के प्रति समर्पण और भक्ति से जीवन के सभी विघ्न दूर होते हैं और भक्तों को सुख और शांति का अनुभव होता है।
शिव पुराण के अनुसार द्वादश ज्योतिर्लिंग और उनके महत्व
भगवान शिव, जिन्हें भूतभावन और अनेकों रूपों में पूजा जाता है, मनुष्यों के कल्याण के लिए विभिन्न तीर्थों में लिंग रूप से विराजमान हैं। ये ज्योतिर्लिंग उन पुण्य-स्थलों पर प्रकट हुए हैं, जहाँ भक्तों ने समर्पण और भक्ति के साथ उनकी आराधना की। हर एक लिंग एक दिव्य शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है और इनकी पूजा करने से भक्तों को परम कल्याण प्राप्त होता है। यद्यपि शिवलिंगों की कोई सीमा नहीं है, फिर भी द्वादश (12) ज्योतिर्लिंग विशेष महत्व रखते हैं, जिनका वंदन शिव पुराण में विशेष रूप से किया गया है।
द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र
शिव पुराण में द्वादश ज्योतिर्लिंग के नामों का स्तोत्र इस प्रकार वर्णित है:
स्तोत्र:
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्। उज्जयिन्यां महाकालमोंकारं परमेश्वरम्।।
केदारं हिमवत्पृष्ठे डाकिन्यां भीमशंकरम्। वाराणस्यां च विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।।
वैद्यनाथं चिताभूमौ नागेशं दारुकावने। सेतुबन्धे च रामेशं घुश्मेशं च शिवालये।।
अर्थ:
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सौराष्ट्र (काठियावाड़) में श्रीसोमनाथ - यह लिंग सौराष्ट्र के काठियावाड़ क्षेत्र में स्थित है और इसे सोमेश्वर के रूप में पूजा जाता है।
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श्रीशैल पर श्रीमल्लिकार्जुन - यह लिंग आंध्र प्रदेश के श्रीशैल पर्वत पर स्थित है और मल्लिकार्जुन के रूप में पूजा जाता है।
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उज्जयिनी में श्रीमहाकाल - उज्जैन में महाकाल के रूप में स्थित यह लिंग शिव की शक्तिशाली उपस्थिति को दर्शाता है।
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नर्मदा के बीच श्रीओंकारेश्वर या अमरेश्वर - नर्मदा नदी के मध्य में स्थित यह लिंग ओंकारेश्वर के नाम से प्रसिद्ध है।
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हिम से आच्छादित केदारखण्ड में श्रीकेदारनाथ - उत्तराखंड के केदारनाथ में स्थित यह लिंग हिमालय के पर्वतों में स्थित है।
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डाकिनी नामक स्थान में श्रीभीमशंकर - पुणे के पास स्थित भीमशंकर लिंग यहाँ प्रकट हुआ है।
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वाराणसी में श्रीविश्वनाथ - काशी (वाराणसी) में स्थित यह लिंग विश्वनाथ के रूप में पूजनीय है।
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गोदावरी तट पर श्रीत्र्यम्बकेश्वर - गोदावरी नदी के तट पर त्र्यम्बकेश्वर लिंग स्थित है।
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चिताभूमि में श्रीवैद्यनाथ - चिताभूमि में वैद्यनाथ लिंग स्थित है, जिसे वैद्यनाथ के नाम से पूजा जाता है।
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दारुकावन में श्रीनागेश्वर - दारुकावन में स्थित यह लिंग नागेश्वर के रूप में पूजा जाता है।
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सेतुबंध पर श्रीरामेश्वर - सेतुबंध (राम सेतु) पर स्थित यह लिंग रामेश्वर के रूप में पूजा जाता है।
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शिवालय में श्रीघुश्मेश्वर - शिवालय (शिव के स्थान) में स्थित घुश्मेश्वर लिंग यहाँ प्रकट हुआ है।
द्वादश ज्योतिर्लिंग के नाम स्मरण की महिमा
द्वादश ज्योतिर्लिंगों के नामों का स्मरण और इनकी पूजा विशेष महत्व रखती है। इससे संबंधित लाभ और प्रभाव इस प्रकार हैं:
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सात जन्मों के पापों का नाश: जो व्यक्ति प्रात:काल उठकर इन ज्योतिर्लिंगों के नामों का पाठ करता है, उसके सात जन्मों के पाप समाप्त हो जाते हैं। यह एक ऐसा पुण्य कार्य है जो जीवन के पापों को समाप्त करने में सक्षम है और व्यक्ति को आध्यात्मिक शुद्धि प्रदान करता है।
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कामनाओं की पूर्ति: जो व्यक्ति इन नामों का पाठ करते हुए विशेष इच्छाओं या कामनाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करता है, उनकी इच्छाएँ पूर्ण होती हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि भगवान शिव की कृपा से मनुष्य की इच्छाएँ पूरी हो जाती हैं।
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पापों का नाश: इन ज्योतिर्लिंगों के दर्शन से ही मनुष्य के पाप समाप्त हो जाते हैं। केवल दर्शन करने से ही पापों का नाश हो जाता है और व्यक्ति को मोक्ष प्राप्त होता है।
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कर्मों का क्षय: जिस पर भगवान शिव प्रसन्न होते हैं, उसके शुभ और अशुभ दोनों प्रकार के कर्म समाप्त हो जाते हैं। भगवान शिव की कृपा से जीवन के सभी कर्मों का फल समाप्त हो जाता है और व्यक्ति को आशीर्वाद प्राप्त होता है।
इन द्वादश ज्योतिर्लिंगों की पूजा और नामों का स्मरण करके भक्त न केवल आध्यात्मिक शांति प्राप्त करते हैं, बल्कि उनके जीवन में स्थिरता और समृद्धि भी आती है। भगवान शिव के प्रति समर्पण और भक्ति से जीवन के सभी विघ्न दूर होते हैं और भक्तों को सुख और शांति का अनुभव होता है।
शिव पुराण में इन ज्योतिर्लिंगों का महत्व अत्यधिक है और इनकी पूजा से प्राप्त पुण्य और फल अनंत हैं। भक्तों को इनकी पूजा विधिपूर्वक करनी चाहिए ताकि वे शिव की अनंत कृपा और आशीर्वाद प्राप्त कर सकें।